Wednesday, August 19, 2009
my think
उनसे मिलने की आस बाकी है
ज़िन्दगी में मिठास बाकी है
रोज़ इतने तनाव सह कर भी
मेरे होंठों पे हास बाकी है
क्या बुझेगी नदी से प्यास उसकी
जिसमें सागर की प्यास बाकी है
आग लगने में देर है केवल
सबके मन में कपास बाकी है
ये कृपा कम नहीं है फ़ैशन की
नारी तन पे लिबास बाकी है !
रोज़ रौंदी गई है पैरों से
अपनी जीवट से घास बाकी है
अस्त्र—शस्त्रों में वो नहीं ताकत
वो जो शब्दों के पास बाकी है.
ज़िन्दगी में मिठास बाकी है
रोज़ इतने तनाव सह कर भी
मेरे होंठों पे हास बाकी है
क्या बुझेगी नदी से प्यास उसकी
जिसमें सागर की प्यास बाकी है
आग लगने में देर है केवल
सबके मन में कपास बाकी है
ये कृपा कम नहीं है फ़ैशन की
नारी तन पे लिबास बाकी है !
रोज़ रौंदी गई है पैरों से
अपनी जीवट से घास बाकी है
अस्त्र—शस्त्रों में वो नहीं ताकत
वो जो शब्दों के पास बाकी है.
Subscribe to:
Posts (Atom)